आदिवासियों का कुंभ 2025 – संस्कृति, परंपरा और एकता का महापर्व

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आदिवासियों का कुंभ 2025 – संस्कृति, परंपरा और एकता का महापर्व - Kumbh of the tribals

आदिवासियों का कुंभ भारत के जनजातीय समाज की संस्कृति, परंपराओं और एकता का एक भव्य आयोजन है। इस महापर्व में देशभर से आदिवासी समुदायों की भागीदारी होती है, जहां वे अपनी लोककला, नृत्य, संगीत, रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताओं का प्रदर्शन करते हैं। यह आयोजन आदिवासी समाज की पहचान, अधिकारों और विरासत को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है। आइए, इस भव्य कुंभ का हिस्सा बनें और आदिवासी संस्कृति की समृद्ध धरोहर को जानें और समझें! 🚩🌿

बेणेश्वर मेला 2025: आदिवासियों का सबसे बड़ा धार्मिक मेला

बेणेश्वर मेला राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित वागड़ अंचल के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों की सीमाओं पर बेणेश्वर धाम पर लगता है। यह मेला सोम, माही और जाखम (लुप्त) नदियों के त्रिवेणी संगम पर हर साल माघ पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है। इसे आदिवासियों का कुंभ भी कहा जाता है।

बेणेश्वर मेले का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

बेणेश्वर धाम भगवान शिव और भगवान विष्णु के पावन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि अनुष्ठान संपन्न करते हैं। यहाँ भगवान विष्णु के रूप में माने जाने वाले बेणेश्वर महादेव की पूजा की जाती है।

मेले में प्रमुख आयोजन

  1. स्नान और पूजा-अर्चना: श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करके मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।
  2. अस्थि विसर्जन: लोग अपने मृत परिजनों की अस्थियों का विसर्जन पवित्र संगम में करते हैं।
  3. भजन-कीर्तन और सत्संग: रातभर भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन किया जाता है।
  4. लोकनृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम: राजस्थान और गुजरात के आदिवासी समूह पारंपरिक नृत्य और गीत प्रस्तुत करते हैं।
  5. मेले में विभिन्न दुकानें और झूले: मेले में पारंपरिक सामान, मिठाइयां, खेल-तमाशे और झूले लगाए जाते हैं।

बेणेश्वर मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालु

राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से लाखों श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। विशेष रूप से भील और गरासिया आदिवासी समुदाय इस मेले में अपनी परंपराओं के साथ भाग लेते हैं।

2025 में बेणेश्वर मेले की तिथि

इस वर्ष 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा के अवसर पर मुख्य मेला भरेगा। यह विशेष आयोजन प्रयागराज के महाकुंभ के समान भव्य माना जा रहा है।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. बेणेश्वर मेला कब और कहाँ लगता है?

बेणेश्वर मेला हर साल माघ पूर्णिमा को डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों की सीमा पर बेणेश्वर धाम में आयोजित होता है।

2. बेणेश्वर मेले को आदिवासियों का कुंभ क्यों कहा जाता है?

इस मेले में लाखों आदिवासी समुदाय के लोग शामिल होते हैं, इसलिए इसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।

3. मेले में कौन-कौन से धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं?

श्रद्धालु संगम में स्नान, तर्पण, पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन, और अस्थि विसर्जन जैसे धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

4. कौन-कौन से राज्यों से लोग इस मेले में भाग लेते हैं?

राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और महाराष्ट्र के श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

5. 2025 में बेणेश्वर मेले की तिथि क्या है?

2025 में यह मेला 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा के दिन आयोजित होगा।

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बेणेश्वर मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है। यह मेला श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है और समाज में समरसता और भाईचारे का संदेश फैलाता है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति इसे एक भव्य आयोजन बनाती है, जो सांस्कृतिक विविधता और आस्था का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।

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